יום שלישי, 25 במרץ 2008

VARTMAAN

EK OR GHOTALE HAIN TO RISHWAT DOOJI OR HAI
CHAAYAA AISA ANDHKAAR HAI NAHI HO RAHI BHOR HAI

CHEHRE PAR IMAAN JHALAKATA LEKIN BHITAR CHOR HAI
NETA BIKTE AFSAR BIKTE MARKETING KA JOR HAI

MANDIR MASJID KO BHI NETAON NE KHOOB BHUNAYA HAI
SAMPRADAY KE NAAM SE JANTA KO BHI BAHUT GHUMAYA HAI

NAHI BACHE INKE CHANGUL SE PAIGAMBAR AUR RAAM BHI
LE AYE HAI RAJNEETI ME KHEECH YE UNKE NAAM BHI

JIS KAGAJ PAR LOG SACHAI KA PRAMAN DIKHATE HAIN
USME BHEE TELGI SAREEKHE GHOTALE KARWAATE HAIN

VIPDAON KI MAAR PAR RAHI YOON TO HAR LAACHAAR PAR
NAUKARIYA HAIN MILTI BAS ANUSHANSHA KE AADHAAR PAR

BHAVISHYA SAWAARNA KAHTE HAIN KI VARTMAAN KAA KAAM HAI
VARTMAAN ME LAGTA HAI BAS MALIK AB TO RAAM HAI.

BALRAM DUBEY
brdubey@gmail.com

יום ראשון, 10 בפברואר 2008

परहित धर्मं नही रह गया !

कांपते हुए स्वर में एक व्यक्ति
भीख की तरह मदद मांग रह था
यह देख मन विचलित हो गया
रोम रोम कांप गया
कई सवाल उठे मन में
क्या मदद भी भीख कि तरह मांगी जायेगी
अब इस दुनिया में
क्यों आयी ऎसी स्थिथि
क्यों सबल निर्बल पर दया करना भूल गया
क्यों मदद भीख में दी जाने लगी
तुलसी के वचनों को भूल गए हैं क्या लोग
क्या अब परहित को धर्म नहीं माना जाता
अगर ऐसा है तो भला लोगों की मानसिकता
कहाँ जा रही है और कितनी नीचे तक गिरकर रुकेगी
क्या इसका अनुमान लगाया जा सकता है.

יום רביעי, 5 בספטמבר 2007

पं सुरेश नीरव की कविता

लीजिये, अब मैं जो कुछ आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ वह साधारण बिल्कुल नही है। दिल थाम के बैठिये क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आपको निरंतर हँसना है। ये कविता ही एक ऐसे कवि की है जो देश विदेश में कवि सम्मेलनों के मंचों पर अपने काव्य कौशल से लोंगो हंसा-हंसा कर बेहाल किये हुये हैं, पिछले दो दशकों से। नीरव जी की कविताओं में गहरे तक दिल को छू लेने की क्षमता होती है और वे हास्य-व्यंग्य से इतनी परिपूर्ण कि सुने तो बार बार सुनने का मन करता है :

बीवी है बैंक और पति आजन्म कर्ज है
नखरों की पासबुक साड़ी तनख्वाह दर्ज है

जीजाश्री के वास्ते टोनिक हैं सालियां
साला तो वायरस है लाइलाज मर्ज है

पीते कोई हसीना तो शर्माइये नहीं
पीटना पिताना आशिकों का पहला फ़र्ज़ है

बीवी की फायरिंग से बचाता नहीं कोई
सर ओखली में दे भला ये किसको गरज है

कश्मीर जैसा हुस्न करगिल-सी अदाएँ
बंकर सी आंख वाली को आदाब अर्ज़ है

पंडित सुरेश नीरव,
फ़ोन : ९८१०२४३९६६

יום שני, 3 בספטמבר 2007

יום רביעי, 29 באוגוסט 2007

संवेदनाएँ मर गयी हैं क्या?

कहॉ सो गयी है मानवता
मनुष्यता को क्या हो गया है
क्यों है वह नशे में धुत्त
आसपास के घटनाक्रम से बेखबर
क्या ऐसे ही समस्याएं हल हो पाएंगी
कक्ष् जगोगे?
क्या तब जागोगे जब एक और निथारी कन्द हो जाएगा
या फिर तब, जब एक और बहू
जला दीं जायेगी दहेज़ लोभिओं द्वारा
तब तक सोने से क्या फायदा
जब tak कोई वहशी एक और मासूम को
अपना शिकार न बाना ले
उठो, जागो, संभलो और थान लो
भ्रष्टाचारियों की ईंट से ईंट बजा डालो
इंसानियत को बुलंद करो
बता दो सक्ष्को कि मानवता आज भी जिंदा है
इंसानियत आज भी जाग रही है
संवेदनाएँ अभी मरी नहीं।

एक दूसरे से क्या डरना

एक दूसरे की टांग खिंचाई में कुछ रखा है क्या
क्या फायदा है इसमें
खुद आगे बढ़ो लोग अपने आप आपसे पीछे हो जायेंगे
जीवन को प्रगति का पर्याय समझो
डरना हो तो स्वयं से या इश्वर से दरो
एक दूसरे से क्या डरना

יום חמישי, 23 באוגוסט 2007

सोचो तो जरा

क्या हो रहा है आज दुनिया में,
क्योँ लोग इस कदर एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं
क्या हम अपनी भावनाओ को बदल नहीं सकते
क्या शांति से रहना हमारे वश में नही है
जरा सोचो परिणाम के बारे में
फिर कुछ करने की ठान लो
आगे बढो यह समाज, यह देश आपका ही है
यहीं आपको भी रहना है
तो यहा का वातावरण खराब क्योँ करते हो.