संवेदनाएँ मर गयी हैं क्या?
कहॉ सो गयी है मानवता
मनुष्यता को क्या हो गया है
क्यों है वह नशे में धुत्त
आसपास के घटनाक्रम से बेखबर
क्या ऐसे ही समस्याएं हल हो पाएंगी
कक्ष् जगोगे?
क्या तब जागोगे जब एक और निथारी कन्द हो जाएगा
या फिर तब, जब एक और बहू
जला दीं जायेगी दहेज़ लोभिओं द्वारा
तब तक सोने से क्या फायदा
जब tak कोई वहशी एक और मासूम को
अपना शिकार न बाना ले
उठो, जागो, संभलो और थान लो
भ्रष्टाचारियों की ईंट से ईंट बजा डालो
इंसानियत को बुलंद करो
बता दो सक्ष्को कि मानवता आज भी जिंदा है
इंसानियत आज भी जाग रही है
संवेदनाएँ अभी मरी नहीं।
मनुष्यता को क्या हो गया है
क्यों है वह नशे में धुत्त
आसपास के घटनाक्रम से बेखबर
क्या ऐसे ही समस्याएं हल हो पाएंगी
कक्ष् जगोगे?
क्या तब जागोगे जब एक और निथारी कन्द हो जाएगा
या फिर तब, जब एक और बहू
जला दीं जायेगी दहेज़ लोभिओं द्वारा
तब तक सोने से क्या फायदा
जब tak कोई वहशी एक और मासूम को
अपना शिकार न बाना ले
उठो, जागो, संभलो और थान लो
भ्रष्टाचारियों की ईंट से ईंट बजा डालो
इंसानियत को बुलंद करो
बता दो सक्ष्को कि मानवता आज भी जिंदा है
इंसानियत आज भी जाग रही है
संवेदनाएँ अभी मरी नहीं।


1 תגובות:
अच्छी कवितायें हैं।
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