יום ראשון, 10 בפברואר 2008

परहित धर्मं नही रह गया !

कांपते हुए स्वर में एक व्यक्ति
भीख की तरह मदद मांग रह था
यह देख मन विचलित हो गया
रोम रोम कांप गया
कई सवाल उठे मन में
क्या मदद भी भीख कि तरह मांगी जायेगी
अब इस दुनिया में
क्यों आयी ऎसी स्थिथि
क्यों सबल निर्बल पर दया करना भूल गया
क्यों मदद भीख में दी जाने लगी
तुलसी के वचनों को भूल गए हैं क्या लोग
क्या अब परहित को धर्म नहीं माना जाता
अगर ऐसा है तो भला लोगों की मानसिकता
कहाँ जा रही है और कितनी नीचे तक गिरकर रुकेगी
क्या इसका अनुमान लगाया जा सकता है.

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