יום רביעי, 5 בספטמבר 2007

पं सुरेश नीरव की कविता

लीजिये, अब मैं जो कुछ आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ वह साधारण बिल्कुल नही है। दिल थाम के बैठिये क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आपको निरंतर हँसना है। ये कविता ही एक ऐसे कवि की है जो देश विदेश में कवि सम्मेलनों के मंचों पर अपने काव्य कौशल से लोंगो हंसा-हंसा कर बेहाल किये हुये हैं, पिछले दो दशकों से। नीरव जी की कविताओं में गहरे तक दिल को छू लेने की क्षमता होती है और वे हास्य-व्यंग्य से इतनी परिपूर्ण कि सुने तो बार बार सुनने का मन करता है :

बीवी है बैंक और पति आजन्म कर्ज है
नखरों की पासबुक साड़ी तनख्वाह दर्ज है

जीजाश्री के वास्ते टोनिक हैं सालियां
साला तो वायरस है लाइलाज मर्ज है

पीते कोई हसीना तो शर्माइये नहीं
पीटना पिताना आशिकों का पहला फ़र्ज़ है

बीवी की फायरिंग से बचाता नहीं कोई
सर ओखली में दे भला ये किसको गरज है

कश्मीर जैसा हुस्न करगिल-सी अदाएँ
बंकर सी आंख वाली को आदाब अर्ज़ है

पंडित सुरेश नीरव,
फ़ोन : ९८१०२४३९६६

יום שני, 3 בספטמבר 2007