יום רביעי, 29 באוגוסט 2007

संवेदनाएँ मर गयी हैं क्या?

कहॉ सो गयी है मानवता
मनुष्यता को क्या हो गया है
क्यों है वह नशे में धुत्त
आसपास के घटनाक्रम से बेखबर
क्या ऐसे ही समस्याएं हल हो पाएंगी
कक्ष् जगोगे?
क्या तब जागोगे जब एक और निथारी कन्द हो जाएगा
या फिर तब, जब एक और बहू
जला दीं जायेगी दहेज़ लोभिओं द्वारा
तब तक सोने से क्या फायदा
जब tak कोई वहशी एक और मासूम को
अपना शिकार न बाना ले
उठो, जागो, संभलो और थान लो
भ्रष्टाचारियों की ईंट से ईंट बजा डालो
इंसानियत को बुलंद करो
बता दो सक्ष्को कि मानवता आज भी जिंदा है
इंसानियत आज भी जाग रही है
संवेदनाएँ अभी मरी नहीं।

एक दूसरे से क्या डरना

एक दूसरे की टांग खिंचाई में कुछ रखा है क्या
क्या फायदा है इसमें
खुद आगे बढ़ो लोग अपने आप आपसे पीछे हो जायेंगे
जीवन को प्रगति का पर्याय समझो
डरना हो तो स्वयं से या इश्वर से दरो
एक दूसरे से क्या डरना

יום חמישי, 23 באוגוסט 2007

सोचो तो जरा

क्या हो रहा है आज दुनिया में,
क्योँ लोग इस कदर एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं
क्या हम अपनी भावनाओ को बदल नहीं सकते
क्या शांति से रहना हमारे वश में नही है
जरा सोचो परिणाम के बारे में
फिर कुछ करने की ठान लो
आगे बढो यह समाज, यह देश आपका ही है
यहीं आपको भी रहना है
तो यहा का वातावरण खराब क्योँ करते हो.